मैं चला था जिस रस्ते पे
उस रस्ते पे चलना छोड़ दिया
चल पड़ा मैं दुसरे रस्ते की ओर
जिसपे
फूल ही फूल नज़र आ रहे थे
कुछ दूर चला तो
पैरो में कांटे चुभने लगे
भूल गया था शायद
फूल तक पहुँचने के लिए
काँटों से गुजरना पड़ता है
अब बिच रस्ते में फँस गया
आगे बढ़ना तो मुमकिन था
पर पीछे लौटने की मेरी फितरत नहीं
कोशिश तो करूंगा
उसी रस्ते पर आगे बढ़ने का
अब
रस्ते बदलने की हिम्मत नहीं होती
क्योंकि अब मेरी
पैर ही नहीं मेरी रूह भी दर्द
से कांपती है
अब रास्ता जो बदला
तो शायद वो मेरी आखरी रह होगी
No comments:
Post a Comment