Wednesday, August 4, 2010

EK RASTAA

मैं चला था जिस रस्ते पे
  उस रस्ते पे चलना छोड़ दिया
चल पड़ा मैं दुसरे रस्ते की ओर
जिसपे
फूल ही फूल नज़र आ रहे थे
कुछ दूर चला तो
पैरो में कांटे चुभने लगे
भूल गया था शायद
फूल तक पहुँचने के लिए
 काँटों से गुजरना पड़ता है
अब बिच रस्ते में फँस गया
आगे बढ़ना तो मुमकिन था
पर पीछे लौटने की मेरी फितरत नहीं
कोशिश तो करूंगा
उसी रस्ते पर आगे बढ़ने का
 अब
 रस्ते बदलने की हिम्मत नहीं होती
क्योंकि अब मेरी
पैर ही नहीं मेरी रूह भी दर्द
 से कांपती है
अब रास्ता जो बदला
तो शायद वो मेरी आखरी रह होगी

Monday, August 2, 2010

MATA-PITA ( PARRENTS)

माता-पिता 
 जो अपने शंतानो को 
ऊँगली पकड़  कर चलना सिखाते है
 क्यों वही शंताने 
  बुढ़ापे की लाठी नहीं बन पाते हैं 

       पिता जो दिन भर काम  कर
       शंतानो को पढ़ाते - लिखते हैं
       माता जो  को बड़ी प्यार से 
        शंतानो को खाना खिलाती है 
क्यों वही शंताने उन्हें 
दो वक़्त की रोटी को तर्शाते हैं
 माता -पिता  
   जो अपनी शंतानो के दुःख दर्द पर 
     मरहम लगते है 
   क्यों वही शंताने  उन्हें 
    दुःख दर्द दे कर सताते हैं
शंताने जो शैतान बन जाए है
वो भी होंगे कभी
किसी के माता या पिता
क्यों वो ये बातें भूल जाते है