एक उलझन
जो मेरे मन में है
जिसे मैं सुलझा नहीं पा रहा हूँ
एक उलझन
जो मेरे घर में है
जिसे मैं दूर नहीं कर पा रहा हूँ
एक उलझन जो
मेरे दिल में है
जिसे मैं ब्याँ नहीं कर पा रहा हूँ
एक उलझन
जो मेरे चेहरे पर है
जिसे मैं छुपा नहीं पा रहा हूँ
सारी उलझनों कि जड़ है
एक उलझन
जिसे मैं जन कर भी
उलझता जा रहा हूँ
चाहता हूँ दूर करना
इस उलझन को
पर न जाने क्यों
मैं कुढ़ को ही
समझ नहीं पा रहा हूँ |
मैं कौन हूँ,
मैं ख़ुद जनता नहीं,
मानव हूँ , या
मानव के रूप में दानव हूँ ,
मैं ये हूँ , मैं वो हूँ,
मैं सच हूँ या झूठ हूँ ,
मैं हूँ तो क्यों हूँ ,
मेरा वजूद क्या है
क्या करना है मुझको
और क्या कर रहा हूँ
बोलता कुछ और
करता कुछ और हूँ
आँखें हैं पर
दिखाई नहीं देता
कान है पर
सुनाई नहीं देता
कहता हूँ पर
सच्चाई नहीं होता
सच तो ये है कि
मैं अपने आप को
पहचानता नहीं हूँ
मैं कौन हूँ
मैं ख़ुद जनता नहीं !
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