Wednesday, December 29, 2010

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Saturday, October 2, 2010

WO SHAM :: THAT EVENING

हाय ! वो शाम 
   जो थे उनके नाम
   देखता था कभी उनको
  आते जाते नज़रों से
   नज़रो से नज़र भी मील जाती थी 
      अब नज़रो से नज़र नहीं मिलती
       हम फिर भी उन्हें देखते है
    वो दूर है हम से 
    तो क्या हुआ
   उन्हें दिल में बसाकर रखते हैं
जब भी आती है, उनकी याद
 हाय ! वो शाम याद कर लेते हैं
      जहाँ मैं था
        वो थीं 
       और सपनो के मेले थे
हाय ! वो शाम
 जो थे उनके नाम ......




 

Wednesday, August 4, 2010

EK RASTAA

मैं चला था जिस रस्ते पे
  उस रस्ते पे चलना छोड़ दिया
चल पड़ा मैं दुसरे रस्ते की ओर
जिसपे
फूल ही फूल नज़र आ रहे थे
कुछ दूर चला तो
पैरो में कांटे चुभने लगे
भूल गया था शायद
फूल तक पहुँचने के लिए
 काँटों से गुजरना पड़ता है
अब बिच रस्ते में फँस गया
आगे बढ़ना तो मुमकिन था
पर पीछे लौटने की मेरी फितरत नहीं
कोशिश तो करूंगा
उसी रस्ते पर आगे बढ़ने का
 अब
 रस्ते बदलने की हिम्मत नहीं होती
क्योंकि अब मेरी
पैर ही नहीं मेरी रूह भी दर्द
 से कांपती है
अब रास्ता जो बदला
तो शायद वो मेरी आखरी रह होगी

Monday, August 2, 2010

MATA-PITA ( PARRENTS)

माता-पिता 
 जो अपने शंतानो को 
ऊँगली पकड़  कर चलना सिखाते है
 क्यों वही शंताने 
  बुढ़ापे की लाठी नहीं बन पाते हैं 

       पिता जो दिन भर काम  कर
       शंतानो को पढ़ाते - लिखते हैं
       माता जो  को बड़ी प्यार से 
        शंतानो को खाना खिलाती है 
क्यों वही शंताने उन्हें 
दो वक़्त की रोटी को तर्शाते हैं
 माता -पिता  
   जो अपनी शंतानो के दुःख दर्द पर 
     मरहम लगते है 
   क्यों वही शंताने  उन्हें 
    दुःख दर्द दे कर सताते हैं
शंताने जो शैतान बन जाए है
वो भी होंगे कभी
किसी के माता या पिता
क्यों वो ये बातें भूल जाते है





Sunday, July 18, 2010

uljhan :: confusion

एक उलझन
जो मेरे मन में है
जिसे मैं  सुलझा नहीं पा रहा हूँ
एक उलझन
जो मेरे घर में है
जिसे मैं दूर नहीं कर पा रहा हूँ
एक उलझन जो
मेरे दिल में है 
जिसे मैं ब्याँ नहीं  कर पा रहा हूँ
एक उलझन
जो मेरे चेहरे पर है
जिसे मैं छुपा नहीं पा रहा हूँ 
सारी उलझनों कि जड़ है
 एक उलझन
जिसे  मैं जन कर भी
उलझता जा रहा हूँ
चाहता हूँ दूर करना
इस उलझन को
पर न जाने क्यों
मैं कुढ़ को ही
समझ नहीं पा रहा हूँ |  

main kaun hoon : : who am i ?

मैं कौन हूँ,
मैं ख़ुद जनता नहीं,
मानव हूँ , या 
मानव के रूप में दानव हूँ ,
मैं ये हूँ , मैं वो हूँ,
मैं सच हूँ या झूठ हूँ ,
मैं हूँ तो क्यों हूँ ,
मेरा वजूद क्या है 
क्या करना है मुझको 
और क्या कर रहा हूँ
बोलता कुछ और 
करता कुछ और हूँ
आँखें हैं पर
दिखाई नहीं देता
कान है पर
सुनाई नहीं देता
कहता हूँ पर
सच्चाई नहीं होता
सच तो ये है कि
मैं अपने आप को
पहचानता नहीं हूँ
मैं कौन हूँ
मैं ख़ुद जनता नहीं !
m

Saturday, June 19, 2010

LIFE WITHOUT WIFE.

KAHTE HAI, JIVAN EK SANGHARSH HAI

Tuesday, June 15, 2010

GHAR ( HOME)

वो  प्यारा  सा ,
 न्यारा सा ,
दस कमरों ,दो ओसारों  ,
एक गोशाला वाला घर ,
वो   िमटटी का घर ,
जहाँ
 गरिमयों  के  तिपश में  ,
 जमीं पर ,
दादी के   िसरहाने   ,
 िदन  में भी मैं ,
कभी सोया करता था ,
आज वो घर  नहीं है ,
उसी जगह पर बना है ,
एक दूसरा नया  घर,
 जो ,
 न िमट्टी का  है ,
 और 
नाही  संगेमर्मर का  ,
पर वो भी ,
 एक घर है   ,
  चार कमरों , एक  ओसारा वाला ,
 अब दादी संग तो नहीं , 
 कभी अपने माँ  के   ,
िसरहाने   सो  जाता  हूँ  ,
मैं   जब कभी घर जाता हूँ , 
लेकीन  न जाने क्यूँ   
मुझे  लगता है  डर ,
क्या मेरा भी होगा ,
कम से कम दो कमरों ,
वाला एक घर ,



  


   

PEHCHAN (IDENTITY)

    ऐ खूदा ,

    तुने मुझे ज़मी  पर भेजा ,

      इन्सां बनाके ,

 लोग इन्सां नहीं ,

 चेहरे को देखते हैं ,

 लोग इस चेहरे का ,

 मजाक बनाते है 

 शुक्र है ,

 मुझे , मेरा चेहरा ,

  अच्छा लगता है ,

    क्योंकी,

     अपना चेहरा ही तो ,

  अपना पहचान बनता है ,

मैं नहीं चाहता ,

ऐसी पहचान , जो ,

छीपा  हो  िकसी,

दूसरे चेहरे के पीछे ,

क्योंकी ,

ख़ुद अपना चेहरा ही तो ,

पहचान िदलाता  है ,






   

Monday, June 14, 2010

life (jindgi)

जिन्दगी मिली है,
 तो जीना सिख  लो ,
हर  कदम पर मिलेंगी ठोकरें ,
चलना सिख लो,
ये रिश्ते ये नाते,
 बस मतलब के,
इस मतलबी लोगों से,
कुछ  सिख लो,
वक़त पर छोड़ देतें  है,
सब साथ,
वक़त के साथ चलना सिख लो,
अपनी मुकाम  ख़ुद बनाओ ,
उस मुकाम को पाना सिख लो ,
आती है मुश्किलें बहुत,
मंज़िल  को  पाने में,
इन  मुश्किलों से ,
पार पाना सिख लो ,
जिन्दगी  मिली है ,
तो जीना सिख  लो .

Wednesday, June 9, 2010

Unki Yaad

yad hai mujhe,

jab unhe dekhne ki chahat me,

kabhi chhat par,

kabhi gali me,

kursi laga kar,

baith jata tha,

kabhi unki,

ghar ki chhat par,

kabhi khirki ki or,

jhankta tha,

unki ek jhalak pa kar,

main,

man-hi-man muskata tha,

puchhta tha apne dil se,

kya wo bhi,

tumhe dekh kaar muskati hai?

wo muskurayen

 ya naa muskurayen,

mujhe to bas,

itne me hi maja aata hai,

aaj bhi jab kabhi,

unki bat hoti hai,

naa jane, kyun

mujhe unki yaad aati hai,

mujhe isq ho gaya hai unse,

aisa mujhe lagta hai,

lekin,

ye bat kahne me unse,

naa jane kyun,

dar sa lagta hai,

kahin rooth na jayen,

wo humse,

ye soch ke dil darta hai,

wo jahan bhi rahen,

sada khush rahen,

dil yahi duaa karta hai,

dil yahi duaa karta hai,